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08:12, 15 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम प्रकाश सारस्वत
}}
<Poem>
'''दिन'''
लिख रहे हैं धुंध
कुंद हो रहा उजास
आस क्या करे?
'''पहाड़'''
पढ़ रहे हैं बर्फ
सर्द पड़ी रही उमंग
रंग क्या करे?
'''सूर्य'''
दे रहा दग़ा
जगा न भोर का हुलास
हास क्या करे?
'''रक्त'''
रेत पर लुटा
उगा न गंध न पराग
राग क्या करे?
'''धूप'''
बादलों में रोए
ढोए मिन्नतें हज़ार
प्यार क्या करे?
</poem>