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प्रात / ओमप्रकाश सारस्वत
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{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने
दो /
ओम प्रकाश
ओमप्रकाश्
सारस्वत
}}
<Poem>
प्रात हुई
कुचिपुड़ि
दस्तक दे
आंगन
आँगन
के द्वार
दूब ने
हल्की की
अनिल जनविजय
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