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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]

<poem>
जगह थी दिल को तेरे, दिल में इक ज़माना था
मिरे भी शीशे को इस संग में ठिकाना था

ख़रीद इश्क़ ने जिस रोज़ की मताए-हुस्न1
जो नक़्दे-जाँ2 पड़ी क़ीमत तो दिल बयाना3 था

जो ज़िक्र बाद मिरे होगा जाँनिसारों का
करोगे याद मुझी को कि वो इक फ़लाना था

जो हद्दे-रीश4 की रखने से मैं सुख़न5 पूछा
हरेक बात में ज़ाहिद की शाख़साना6 था

ब-जुर्मे-नीम-निगह7 था न क़त्ले-'सौदा' फ़र्ज़
अजल8 के वास्ते उसके ये इक बहाना था

'''शब्दार्थ
1. सौन्दर्य रूपी वस्तु, 2. जान रूपी पूँजी, 3. पेशगी, 4. दाढ़ी की हद, 5. कारण, 6. अगर मगर, 7. अधखुली आँखों का अपराध करके, 8. मौत
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