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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

बुलबुल ने जिसे जाके गुलिस्तान में देखा
हमने उसे हर ख़ारे-बयाबान1 में देखा

रौशन है वो हर एक सितारे में ज़ुलैख़ा
जिस नूर को तूने महे-कुनआन2 में देखा

बरहम करे जमैयत-कोनैन जो पल में3
लटका वो तिरी ज़ुल्फ़े-परीशान में4 देखा

वाइज़ तो सुने बोले है जिस रोज़ की बातें
उस रोज़ को हमने शबे-हिजरान में देखा

ऐ ज़ख़्मे-जिगर सौद-ए-अलमास से5 ख़ूगर6
कितना वो मज़ा था जो नमकदान में देखा

'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तूने उसे किस आन7 में देखा

'''शब्दार्थ
1.उजाड़ जगह का काँटा, 2. कुनआन का चाँद(पैग़म्बर हज़रत युसुफ़), 3.जो लोकों की व्यवस्था को पलभर में छिन्न-भिन्न कर दे, 4. बिखरी हुई ज़ुल्फ़, 5. तलवार की धार का, 6. अभ्यस्त, 7. पल
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