गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
लोकगीत / गोरख पाण्डेय
60 bytes added
,
13:07, 16 जनवरी 2009
झुर-झुर बहे बहार
गमक गेंदा की आवे!
दुख की तार-तार चूनर पहने
लौट गई गौरी
नइहर रहने
चन्दन लगे किवाड़
पिया की याद सतावे.
भाई चुप भाभी
देता ताने
बचपन की मनुहार
नयन से नीर बहावे.
परदेसी ने की जो अजब ठगी
हुई धूल-माटी की
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits