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दागो, भागो / शैल चतुर्वेदी

35 bytes added, 20:41, 18 जनवरी 2009
|रचनाकार=शैल चतुर्वेदी
|संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी
}}<poem> 
दुश्मन
हथियार मांग लाया दान में
अकारण ही भारत पर
कर दी चढ़ाई
तो देश के बूढ़े और जवानपंजबीपंजाबी, मरहठे, पठान
आ गए होश में
तो हम भी
भनभनाने लगे जोश में
सेना मे में भरती होने का
हो आया चाव
आव देखा न ताव
कहने लगी - "क्या बोलते हो
अपने को सैनिक से तौलते हो
अरे, बहादुरी ही दिखाना दिखानी था
तो शादी क्यों की
मेरी बरबदी बरबादी क्यों की
क्या घर में लड़ते-लड़ते
जी नहीं भरा
जोर मार रहा था
कर्तव्य पुकार रहा था
हल हम बोले- "क्या कहती हो
देश पर संकट है
कहाँ रहती हो
हिमालय जल रहा है
देश पर बिजली कौंध रही है
हैवनियतहैवानियत
इंसानियत को रौंद रही है
शत्रु बात-बात पर
अड़े जाता है
देश पर अपने चढे चढे़ जाता है
लगातार बढ़े जाता है
बावरी!
यहाँ तक आ पहुँचा तो क्या करोगी
फिर तो लड़ोगी
उसे वही वहीं रोकना अच्छा है
देखती नहीं
जाग गया देश का बच्चा-बच्चा है।"
वे बोली-"जानती हूँ
मगर तुम बच्चे नहीं हो
तुम्हारे कन्धों ओअर और ज़िम्मेदारी है
पीछे पांच बच्चे हैं
एक नारी है
घर मे में लड़ लेते हो
तो क्या ये समझते हो
कि फौज से लड़ना आसान है
और फायरिंग भी की थी
निशानेबाज़ी में इनाम पाया था
पेपरों मे में नाम आया था।"
वे बोलीं-"बस-बस रहने दो
तो ड़ालना दूर रहा
सुई गुमा दी
उस दिन लकड़ी फड़ने फ़ाड़ने को कहा
तो कुल्हाड़ी
पैर पर दे मारी थी
और बैल्ट समझकर
खूंटी से छड़ी उतार दी उतारी थी
सी.सी. बीसी(एन.सी.सी नहीं) को
गोली मारो
नहाओ, धूधोओ
और दफ्तर पधारो।"
(उलझना ठीक नहीं
पर स्वयं को
कमज़ोर समझना भी थीक ठीक नहीं)
भोजन किया
और चल दिये दफ्तर को
और सीना बयालीस
वज़न ज़रूरत से ज्यादा है
नौजवन नौजवान नहीं दादा है।"
हमने आथ हाथ जोड़कर कहा-
"सिपाही जी,
यह फैजी फौजी भरती है
या मिस इंडिया का चुनाव है
ले लीजिए न
अफसर बहादुर था
हमको ही किया सपोर्ट
बोला-"साथ सात दिन परेड करेगा
तो शेप में आ जाएगा
फिर कुछ तो काम आएगा
शत्रु को पीछे हटाना है
और दूसरी ओर
देश की फलतू फालतू आबादी घटाना है
चल निकला तो वार करेगा
वर्ना दुश्मन की
तभी धमाका हुआ
शायद बम फूटा
हमारी नीन्द नींद खुल गई
और स्वप्न टूटा।