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अव्यवस्था / मोहन साहिल

9 bytes added, 02:07, 19 जनवरी 2009
कमरे में मेरा होना
मुझे नहीं मिलती वक्त वक़्त पर एशट्रेतीलियां तीलियाँ जला डालती हैं उंगिलयों उंगलियों के पोर सब कुछ उलट -पलट कर भी
कमरे में नहीं मिलती मुझे
गांधी की आत्मकथा
उसका अंत
मेरे कमरे में हर वक्तवक़्त
मौजूद रहता है मेरा बच्चा
एकटक देखता मेरी बौखलाहटबौख़लाहट
और परेशान हो जाता है
सिर पर हाथ रख
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