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वे लोग / मोहन साहिल
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02:19, 19 जनवरी 2009
धनी होते ही समाप्त हो गई
और उनकी मान्यताओं के बदलते ही
ठहाकों में बदल गया उनका
चीखना
चीख़ना
वे सब मेरे अपने
अनिल जनविजय
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