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बाल काण्ड / भाग १ / रामचरितमानस / तुलसीदास
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04:40, 25 मई 2007
<br>भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
<br>सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू॥४॥
<br>गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई॥५॥
<br>दो0-भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
<br>सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥५॥
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Ramadwivedi