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20:10, 19 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<Poem>
धीरे-धीरे
पानी में बदल रही है
बच्चों की नन्हीं हथेलियों में दबी बर्फ़
काले बादलों से बेखबर
ढलान पर चढ़ता फिसलता भविष्य
कितनी ऊर्जा है इनकी किलकारियों में
जो घाटी के सन्नाटे को कर रही भयभीत
बर्फ़ का पेड़
बर्फ़ का घर
बर्फ़ की बस बनाते
इस सफेद दुनिया में
अचरज से कम नहीं
लाल-लाल चेहरों वाले बच्चे।
</poem>