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{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}

<poem>
चांद निकला बादलों से पूर्णिमा का।
:गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
:चूमता है बादलों के झिलमिलाते
:स्वप्न जैसे पाँव।
</poem>
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