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{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<poem>
इस तेल में तेल कम
लहू ज्यादा है

दूध पी लिया अबोध बच्चे ने
यह उसी गैस पर उबला है
जिसमें लहू मिला है

कुछ बनने के लिए सिर खपा रहा है किशोर
सुनसान रात में
लालटेन के पेट में लहू जल रहा है

वक्त से पहुँचा दिया बेटे ने माँ को अस्पताल
एँबुलेंस लहू पर चल कर आई है

तेल रिस गया
लहू जल गया
आदमियों ने नहीं छोड़ा धरती को अपने लायक

कोई उठा ले
किसी दूसरे ग्रह पर रख आए
पृथ्वी को सँभाल कर।
(1991)


</poem>
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