::छल का अपना ही
:::::छंद है
::सर्वोपरि मधुर मुक्त
:::और कितना एब्सट्रैक्ट
:क्योंकि व्यभिचार ही आधुनिकतम
:काव्यकला है और आज
:आलोचना के डाक्टर
:उसे अनादि भी कहते हैं)।
::शब्द का परिष्कार
::स्वयं दिशा है
वही मेरी आत्मा हो
::आधी दूर तक
तब भी
तू बहुत दूर है बहुत आगे
::त्रिलोचन।
वह कोलाहल जो कोंपलों से भरा है
सुनकर
तू विक्षुब्ध हो-हो जाता
::क्या उपनिषदों का शोर
::उसे दबा पाता।
वरूणा के किनारे एक चक्रस्तूप है
शायद वहीं विश्व का केंद्र है
वहीं कहीं
:ऐसा सुनते हैं।
क्रमशः...
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