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ग़ैर और तुम भले भला साहब
क्यों उलझते हो जुम्बिशेलब जुम्बिशे-लब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब
क्यों लगे देने ख़त्ते -आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब
दमे -आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरोजफ़ाजोरो-जफ़ा
जो किया सो भला किया साहब
किससे बिगड़ेथेबिगड़े थे,किसपे ग़ुस्साथेग़ुस्सा थे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब
किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रेख़ैर ज़िक्रे-ख़ैर था साहब
नामे इश्क़ेबुताँ -इश्क़े-बुताँ न लो 'मोमिन'
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब
''''कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा--: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब--: होंटो का हिलनाख़त्तेआज़ादी-, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़,दमेआख़िर-दमे- आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रेख़ैर-ज़िक्रे-ख़ैर: बखान,नामनामे-ए-इश्क़-एइश्क़े-बुताँ--मसीनों : हसीनों के प्रेम का नाम
</poem>