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::सर्वोपरि मधुर मुक्त
:::और कितना एब्सट्रैक्ट
::क्योंकि व्यभिचार ही आधुनिकतम::काव्यकला है और आज::आलोचना के डाक्टर::उसे अनादि भी कहते हैं)।
::शब्द का परिष्कार
:ऐसा सुनते हैं।
क्रमशः...आधुनिकता आधुनिकताडूब रही है महासागर में:किसी कोंपल के ओंठ पेउभरी ओस के महासागर में:डूब रही हैतो फिर क्षुब्ध क्यों है तू। x x x x x x x x x x x x तूने शताब्दियोंसानेट में मुक्त छंद खन करसंस्कृत वृत्तों में उन्हें बांधा सहज ही लगभग:जैसे य' आवारा आकाश बंधे हुए हैं अपनेसरगम के अट्टहाम में। ओ शक्ति से साधक अर्थ के साधकतू धरती को दोनों ओर सेथामे हुए औरआँख मींचे हुए ऐसे ही सूंघ रहा है उसेजाने कब से। तुझे केवल मैं जानता हूँ। ::क्योंकि मैं उसी धरती में लौट रहा हूँ उसकीऋतुओं की पलकों सा बिछा हुआ मैंउसकी ऊष्मा मेंसुलग रहा हूँ::शांति के लिए। एक बासंती सोम झलक जो मेरेअंक से छीनकर चांद लुका लेता हैखींच ले जाती है प्राण मेरा::उस पर भी है तेरी दृष्टि। आंतरिक एकांतवरूणा किनारे की वह पद्म-:ऊष्मा। (1962)
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