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सारनाथ की एक शाम / शमशेर बहादुर सिंह
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16:25, 22 जनवरी 2009
सानेट में मुक्त छंद खन कर
संस्कृत वृत्तों में उन्हें बांधा सहज ही लगभग
:जैसे य'
आवारा
आकाश बंधे हुए हैं अपने
सरगम के अट्टहाम में।
Eklavya
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