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21:19, 22 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
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<poem>
मकई-से वे लाल गेहुँए तलवे
मालिश से चिकने हैं।...
सूखी भूरी झाड़ियों में व्यस्त
चलती-फिरती पिंडलियाँ।
(मोटी डालें, जांघों से न अड़ें!)
सूरज को आईना जैसे नदियाँ हैं –
इन मर्दाना रानों की चमक
'उनको' खूब पसंद।...
यह वन शिव का स्थान।
शांत ज्योति में लय है ध्यान।
नभ-गंगा की शक्ति
सदा बरसती यहाँ।...
वज्र-गिरि। कमठ-कठोर।
सीधा चढ़ता, ऊर्ध्व दिशा की ओर।...
शेष नीला सूनापन।
(1940)
</poem>