|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
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गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में
गले मुझको लगा लो ए दिलदार नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारेये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में ।
बुझे दिल की लगी गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी तो ए याए जमाने दोमनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में ।।
है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ हैबने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में
नहीं यह है गुलाले सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे, य आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में । गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो, मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में । है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुच है, बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में । रसा रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी, नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में ।</poem>