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गा उठी उन्मत आंधी, <br>
अब घटाओं में न रुकती <br>
लास तनमय तन्मय तडित बांधी, <br>
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं! <br><br>
भीत तारक मंदते द्रग <br>
भ्रान्त मारुत पथ न पाता, <br>
छोड उल्का अम्क अंक नभ में <br>
ध्वंस आता हरहराता<br>
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!<br><br>
आंसुओं के सजल रथ में,<br>
मोम सी सांधे बिछा दीं<br>
थीं इसी अम्गार अंगार पथ में<br>स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार मैं में उनको सुला लूं!<br><br>
अब तरी पतवार लाकर <br>
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