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साबरमती के सन्त / प्रदीप
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19:29, 6 सितम्बर 2006
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी<br>
लाखों में घूमता था लिये सत्य की
सोंटी
सोटी
<br>
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी<br>
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी<br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त