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विषकन्या / सरोज परमार

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[[Category:कविता]]
<poem>
 
ज़िन्दगी के पाँवों में
शब्द चिपकने को मचलते हैं
घुल जाती है।
काश! मेरा आज
गुलमोहर का गुछ्छा गुच्छा बन जाए।
</poem>

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