गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सब बुझे दीपक जला लूँ / महादेवी वर्मा
1 byte removed
,
16:32, 14 मई 2007
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!<br><br>
लय बनी
म्रदु
मृदु
वर्तिका<br>
हर स्वर बना बन लौ सजीली,<br>
फैलती आलोक सी <br>
झंकार मेरी स्नेह गीली <br>
Anonymous user
Ramadwivedi