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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=श्रद्धा जैन|संग्रह=}}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले <br>फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले<br><br>
फानूस = काँच का कवर लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझेकब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
लेता हैं इम्तिहान चलना अगरगुनाह है, सब्र दे मुझे<br>अपने उसूल परकब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले <br><br>
 नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है<br>अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले <br><br>  चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर <br>सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले<br><br>  खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में<br>“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले <br><br/poem>