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हँसी / हैरॉल्ड पिंटर

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<Poem>
हँसी थम जाती है पर कभी नहीं होती खत्म
हँसी झुठाने में लगा देती है अपना पूरा दम
हँसी हँसती है उस पर जो है अनकहा हर दम
ये झरती है और किकयाती है और रिसती है दिमाग़ में
ये झरती है और किकयाती है लाशों के दिमाग़ों में
और इस तरह सारे झूठ मज़े से जाते हैं जम
जिन्हें सोख लेती है सिर कटी लाशों की हँसी बेदम
जिन्हें सोख लेते हैं हँसती लाशों के मुँह हर कदम

'''मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य
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