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20:19, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
जिसे पाकर हम
फूले न समाते
जिसे खोकर
हो जाते उदास
ढूँढ़े न मिले जो
सिर्फ चाहने से
वह आती है
दबे पाँव
बेशक
न जाने के लिए
अपनी तरफ से
लेकिन बुद्ध हो सकता है
कोई-कोई ही
जाते हुए कनखियों से देखती
कुछ इस तरह द्रवित
लौटकर आऊँगी
पुकारोगे अगर
जैसे पुकारता है कोई
दुख में
ईश्वर को।
</poem>