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ओझल मोड़ / रेखा

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|रचनाकार=रेखा
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यह पाँवों का पाँवों से
नाता है दोस्त
आ टकराई है नियति
इस ओझल मोड़ पर
चौराहे पर सुरक्षित हैं
हमारे चिरंजीव चेहरे
किसी दुर्घटना के भय से
सिर्फ घूमते हुए पांव हैं
और उनसे लिपटा एक चक्रवात...
इस अंधे मोड़ पर
तुम भी मूँद लो
अपनी दूरबीन-आँखें
मत पढ़ो
मेरे भोज-पत्र-से
भुरे-भुरे चेहरे में
बीते युगों का इतिहास
मत ढूँढो नेत्रों के नक्षत्रों में
कल का कोई आकार
मैं तुम्हारी कौन थी
या कब कौन हो सकती हूँ
व्यर्थ हैं ये सब हिसाब

हमने तो चेहरे बदले हैं
बदलते मौसमों के संग
कई बार
उगे हैं
पके हैं
कटे हैं हम
फसलों के साथ-साथ
नहीं जानता कोई
कहाँ खुलेंगी आँखें
इस करवट बदलते पल की
अर्पण कर दो अपने पाँव
गति के नाम
वसीयत लिख दो जिंदगी
उस गुमनाम रास्ते के नाम
जो स्वयं खुलता जाता है
पांव की आहट के साथ
संग-संग

लिखें हम
धूल पर श्रांति के
निर्मम गीत
पीछे छूटा है
सिर्फ चौराहा और
असमंजस में काठ होते चेहरे
ओझल मोड़ पर
घूम रहा है-पूरा ब्रह्मांड और मेरे-तुम्हारे पाँव।
</poem>
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