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00:27, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
सब छिप जाता है
काले में
सफेद नहीं
सफेद
उनकी पोशाक है
काली
उनकी करनी
दिखे तो दिखे
उन्हें फर्क नहीं पड़ता
देश के नक्शे में
सब कुछ
एक-सा-दिखता
सतह पर
हलचल
नीचे
जड़ता ही जड़ता।
</poem>