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अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
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02:16, 7 फ़रवरी 2009
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|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=
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[[Category:ग़ज़ल]]
अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही
कभू
कभी
लब खोले हैं<br>
पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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