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14:26, 8 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़
|संग्रह=संसार की धूप / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
चार दीवारेंब हैं
दीवारों से झरती मिट्टी है
छत है
टपकती हुई
रसोई है
डंका बाजाती भूख़ है
पलंग है
करवटें हैं
मेज़ है
बस से बाहर
ज़रूरतों की फ़ेहरिस्त है
पत्नि है
काले गढ़ों में धँसी आँखें है
शून्य है
बच्चे हैं
सिर झुकाए फ़ीस की माँग है
और कुछ न माँगने की समझ है
बुढ़ापा है बचपने में
खूँटी पर कुर्ता है
जेब का कफ़न ओढ़े
मरा हुआ सिक्का है
</poem>