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14:31, 8 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़
|संग्रह=संसार की धूप / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
कहना व्यर्थ था
हवा को हवा
धूप को धूप
रात को रात
यातना को यातना
अव्यवस्था को अव्यव्स्था
देखना व्यर्थ था सत्य
रंग-बिरंगे मनमोहक पर्दों के पीछे
जो नंग-धड़ंग था
सोचना व्यर्थ था
विकल्प
व्यर्थ फिर भी
दिन-ब-दिन बढ़ रही थी
अव्यवस्था व्यर्थता को
संगत प्रमाणित करती है
</poem>