Changes

मजबूर / अमृता प्रीतम

75 bytes added, 21:33, 7 मार्च 2010
|संग्रह=
}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरी माँ की कोख मजबूर मज़बूर थी...
मैं भी तो एक इन्सान हूँ
आज़दियों आज़ादियों की टक्कर में
उस चोट का निशान हूँ
उस हादसे की लकीर हूँ
जो मेरी माँ के माथे पर
लगनी ज़रूर थी
मेरी माँ की कोख मजबूर मज़बूर थी
मैं वह लानत हूँ
जब सूरज बुझ गया था
जब चाँद की आँख बेनूर थी
मेरी माँ की कोख मजबूर मज़बूर थी
मैं एक ज़ख्म का निशान हूँ,
आज़ादी बहुत पास थी
बहुत दूर थी
मेरी माँ की कोख मजबूर मज़बूर थी...
(1947)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,568
edits