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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} [[category: ग़ज़ल]] <poem> वही है दिन, वही रातें, वही फ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
[[category: ग़ज़ल]]

<poem>
वही है दिन, वही रातें, वही फ़ज़िर1, वही शाम
वही है रोशनि-ए-मेहरो-मह2 जो कुछ थी मदाम3
न जाने दौरे-मुहब्बत का क्या हुआ, या रब!
कि दोस्तों से जुदा करके गर्दिशे-अय्याम4
हमें ले आयी है शहरे-ग़रीब5 जिस दिन
कभू उन्हों की तरफ़ से न नाम-ओ-पैग़ाम
अलल-ख़ुसूस6 तग़ाफ़ुल7 को 'मीर' साहब के
कहूँ मैं किससे कि बावस्फ़े-इत्तहादे-तमाम8
लिखा न परच-ए-काग़ज़ भी इतनी मुद्दत में
कि बेक़रारों को ता होवे मूजिबे-आराम9
कभू उन्हों को हमारी भी उल्फ़ते-साबिक़10
किसी के हाथ जो भेजे है नाम-ओ-पैग़ाम
जो वो फिरे है उधर से तो ये भी कहता नै11
कि मैं कहीं थी तिरी बंदगी, उन्होंने सलाम

'''शब्दार्थ:
1. सुबह 2. सूरज-चाँद की रोशनी 3. सदैव, स्थायी 4. समय चक्र 5. परदेस का शहर 6. विशेष तौर पर 7. उपेक्षा 8. तमाम मेल-जोल के बाद 9. आराम का कारण 10. पुराना प्रेम 11. नहीं

'''विशेष:
[[मीर तक़ी 'मीर']] की याद में लिखी गयी यह नज़्म वास्तव में एक ग़ज़ल का क़ता है। यह माना जाता है कि [[सौदा]] ने दिल्ली छोड़ दी थी और [[मीर तक़ी 'मीर']] अभी दिल्ली में ही थे।
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