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16:25, 11 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय राठौर
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दण्डकारण्य के सुदूर वनांचल में
बसती है माँ दन्तेश्वरी
आजानुबाहु राजा के
पुरखों के संचित पुण्यों से,
साक्षात वरदायिनी माँ की ममता से
अब भी अभिभूत हैं जंगल के चराचर
अपनी न्यूनतम ज़रूरतों के बीच
सल्फ़ी के कुछ घूँट
और कोदों के कुछ दानों से लोग
अब भी बुझाते हैं अपनी प्यास और भूख
पृथ्वी ने उन्हें दे रखी है
हज़ारों नियामतें
सागौन, साल और महुए के साए में
अब भी वे रहते हैं आदमी की तरह
पाशविकता के इस कारुणिक मौसम में
माँ दंतेश्वरी की कृपा से।
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