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17:06, 11 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह
|संग्रह=
}}
<Poem>
'''सूरज के लिए
पल-पल मुश्किल समय में
अकेला नहीं हूँ
सूरज की हँसी है
मेरे पास
सूरज की हँसी
तीरथगढ़ का जलप्रपात है
जहाँ मैं डूबता-उतराता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी थकान
सूरज हँस रहा है
हँस रहा है घर
हँस रहा है आस-पड़ोस
हँस रहे हैं लोग-बाग
हँस रहे हैं आसमान में उड़ते पक्षी
हँस रहा हूँ मैं
हँस रही है पृथ्वी इस समय।
</poem>