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यादों की राहगुज़र / अविनाश
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06:22, 12 फ़रवरी 2009
नीलकंठ काली कोयल की कूक गुलाब महकता है
सुबह दोपहर
षाम
शाम
सेठ के आगे पीछे करते हैं
बेशर्मी से भरा हुआ श्रम बन कर घाव टभकता है
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