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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:गज़ल]]
[[Category:बशीर बद्र]]<poem>दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगेउदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा हैकोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे
दुआ करो कि नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सहीये पौधा सदा हरा ही लगे <br>उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे<br><br>
ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है <br>कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे<br><br> नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही <br>ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे<br><br> अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है <br>मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे<br><br/poem>