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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब<ref>शैली</ref> समझते होंगेचाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरीलोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे<br>मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू हैचाँद कहते हैं किसे फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे <br><br>
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी<br>भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वालेलोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे आज के प्यार को मायूब<brref>बुरा<br/ref>समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है<br>{{KKMeaning}}फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे <br><br> भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले<br>आज के प्यार को मायूब समझते होंगे <br><br><br> उस्लूब=शैली ; मायूब=बुरा<br><br/poem>