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नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करोजाग जग में रह कर कुछ नाम करो, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहोसमझो जिसमें यह व्यर्थ न हो, कुछ तो उपयुक्त करो तन कोनर हो, न निराश करो मन को
संभलों कि सुयोग न जाय चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपय भलासमझो जग को न नीरा सपना, पाठ आप प्रशस्त करो अपनाअखिलेश्वर है अवलंबन को, नर हो, न निराश करो मन को
निज़ गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ है ये ध्यान रहेमरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे, जब प्राप्त तुम्हें सब जाय अभी पर मान रहेतत्त्व यहाँकुछ हो न तज़ो साधन फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँतुम स्वत्त्व सुधा रस पान करोउठके अमरत्व विधान करोदवरूप रहो भव कानन को , नर हो, न निराश करो मन को
प्रभु ने तुमको दान किए, सब वांछित वस्तु विधान किएनिज़ गौरव का नित ज्ञान रहेतुम प्राप्‍त करो उनको न आहो, फिर हम भी कुछ है किसका दोष कहोये ध्यान रहेसमझो मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहेसब जाय अभी पर मान रहेकुछ हो अलभ्य किसी धन तज़ो साधन को, नर हो, न निराश करो मन को
किस गौरव के तुम योग्य नहीं, कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहींप्रभु ने तुमको दान किएजान हो तुम भी जगदीश्वर के, सब है जिसके अपने घर के वांछित वस्तु विधान किएतुम प्राप्‍त करो उनको न आहोफिर दुर्लभ क्या उसके जन है किसका दोष कहोसमझो न अलभ्य किसी धन को, नर हो, न निराश करो मन को
किस गौरव के तुम योग्य नहींकब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहींजान हो तुम भी जगदीश्वर केसब है जिसके अपने घर के फिर दुर्लभ क्या उसके जन कोनर हो, न निराश करो मन को  करके विधि वाद न खेद करो, निज़ लक्ष्य निरन्तर भेद करोबनता बस उद्‌यम ही विधि है, मिलती जिससे सुख की निधि हैसमझो धिक् निष्क्रिय जीवन को, नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
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