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पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात
निद्रा में जा पड़े कभी के ग्राम-मनुज स्वच्न्द स्वच्छंद
अन्य विग भी निज़ निज नीड़ों में सोते हैं सानन्द
इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चिन्तत गात
यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ?
या तुझको निज-जन्म भूमी भूमि की सता रही है याद ?
विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप
गाती है तटिनी उस भू की बता कौन सा गान ?
कैसा स्निग्ध्र स्निग्ध समीरण चलता कैसी वहाँ सुवास
किया यहाँ आने का तूने कैसे यह आयास ?
(सरस्वती, जुलाई, 1920)