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<poem>
कुछ है ज़रूर कि हवा अबेरती है
किसी ढिग लगे घर की यह टटकी गन्ध

निकली हो कोई लड़कोरी कुँआ पूजने शायद
किलका हो कहीं नवजात शिशु कजरौटा
अगुवाई की बेरा हो जैसे फूलचौक पर किसी स्त्री की

घिनौची में फूटती है हरी-हरी दूब
आँखें खोल रही हैं भीत पर पीपल की फुनगियाँ

कहीं भीतर कोमल जड़ों के उत्स पर
टहलती लोरी की उनींदी टेर

कुछ है ज़रूर कि समय डूबा है हर कहीं हाहाकार में जब
किसी बच्चे की दस्तक है यह आसमान पर कि
उठती है मधुरला की नीली चमकीली तान


'''सन्दर्भ :

मध्ररला= बुन्देलखण्ड में गाए जाने वाले सोहर का प्रकार। ’मधुरला’ मंगलकामना का बुन्देली गीत है।
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