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कुररी के प्रति / मुकुटधर पांडेय
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21:19, 6 सितम्बर 2006
यह ज्योत्सना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद ?
या तुझको निज
जन्म
-
भूमि
जन्मभूमि
की सता रही है याद ?
विमल व्योम में टँगे मनोहर मणियों के ये दीप
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जय प्रकाश मानस