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बिखरना / रघुवीर सहाय

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|रचनाकार =रघुवीर सहाय
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<poem>
कुछ भी रचो सबके विरूद्ध होता है
इस दुनिया में जहाँ सब सहमत हैं
क्या होते हैं मित्र कौन होते हैं मित्र
जो यह ज़रा-सी बात नहीं जानते
अकेले लोगों की टोली
देर तक टोली नहीं रहती
वह बिखर जाती है रक्षा की खोज में
रक्षा की खोज में पाता है हर एक अपनी-अपनी मौत।

(12.6.74)
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