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13:22, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=यश मालवीय
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[[Category:नवगीत]]
<Poem>
भीड़ से भागे हुओं ने
भीड़ कर दी
एक दुनिया कई हिस्सों में
:::कुतर ली
::सिर्फ़ ऎसी और
:::तैसी में रहे
रहे होकर
:::ज़िन्दगी भर असलहे
जब हुई ज़रूरत,
:::आँख भर ली
:::रोशनी की आँख में
:::भरकर अंधेरा
:::आइनों में स्वयं को
:::घूरा तरेरा
वक़्त ने हर होंठे पर
::आलपिन धर दी
:::उम्र बीती बात करना
:::नहीं आया
:::था कहीं का गीत,
:::जाकर कहीं गया
दूसरों ने ख़बर ली,
:::अपनी ख़बर दी
</poem>