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13:43, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=यश मालवीय
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[[Category:नवगीत]]
<Poem>
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
गीत जो अब तक नहीं गाया
हम उसे समझें सुनें आओ
:::हैं रिहर्सल में हमारी आत्माएँ
:::और मंचन की नहीं तारीख़ तय है
:::बोलने के नाम पर ज़्यादा कहें क्या
:::घुट रहे से शोर की ही चीख़ तय है,
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
उँगलियों पर ख़ून की बूँदें सजाएँ
फूल काँटों से चुनें आओ
:::नीच ट्रेजडी का कथानक भूल जाएँ
:::खुली खिड़की से निहारें आसमाँ
:::पाँव से ही ये ज़मी नत्थी रहे
:::और हम फिर-फिर पुकारें आसमाँ
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
आ रहे कल पर ज़रा सोचें-विचारें
सिर रुई जैसा धुनें आओ
:::कुछ नहीं 'रेडिकल' रहा तो क्या हुआ
:::बत्तखों जैसी सुबह अब भी सजे
:::रात में भी जाग उठती हैं उम्मीदें
:::दस बजे, ग्यारह बजे, बारह बजे
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
है लबालब ताल आँखॊं का
गुनगुना पानी गुनें आओ
</poem>