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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभा दीक्षित
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[[Category:ग़ज़ल]]
<Poem>
हम अपनी ज़िन्दगी को सही मायनें तो दें
मंज़िल को दिशा ठीक से पहचानने तो दें।

ये जुस्तजू ये ज़िन्दगी कुछ बेवज़ह नहीं
पर्वत से अपने क़द को ज़रा नापने तो दें।

इक पूरा समन्दर मेरी बाँहों में आ सके
बूंदों का हौंसला ज़रा निर्वाहने तो दें।

दुनिया में सलीबों की रवायत ज़रा बदल गई
इस दौरे मसीहा को ज़रा आइना तो दें।

हम हद में रह के भी तो हदों से गुज़र गए
दुनिया को मेरे फ़न की अदा जाननें तो दें।

आँखों के ख़्वाब दिल के असूलों में जी लिए
पहले अदब से रोशनी को थामने तो दें।

रौशन सियाह रात भी हो जाएगी 'प्रभा'
पहले मेरे चिराग की लौ काँपने तो दें।
</poem>