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जीवन साफल्य / मुकुटधर पांडेय

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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:मुकुटधर पांडेय]] ~*~*~*~*~*~*~*~<Poem>
अपनों को यह अपना जीवन जिस प्रकार अतिप्यारा है
 
अन्य प्राणियों का भी जीवन उससे स्वल्प न न्यारा है
 
ऐसा सोच अहिंसा ही को परम धर्म जिसने जाना
 
सफल किया बस, उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
 
 
अंतर्हित हो वही अकेला सदा सब जगह रहता है
 
दया स्रोत उसका हम सब पर अविश्रांत नित बहता है
 
मन वच और कर्म से जिसने ऐसा प्रभु को अनुमाना
 
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
 
 
सदाचार सद्गुण से जिसने सब प्रकार नाता जोड़ा
 
दुराचार दुर्गुण, दुरितों से जिसने अपना मुँह मोड़ा
 
उचित छोड़ जिसने अनुचित को किया नहीं है मनमाना
 
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
 
 
काम क्रोध, मद लोभ न जिसके पास फटकने पाते हैं
 
दया, धर्म, एकता, शांति, शुचि शील जिसे अति भाते हैं
 
पुण्य-प्रेम क्या वस्तु-तत्व इसका यथार्थ जिसने जाना
 
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
 
 
न्याय-अन्याय बिसार, स्वार्थ से अंध न जो बैठा है
 
विद्या, बल, पौरुष, पाकर भी जो न गर्व से ऐंठा है
 
पर-उपकार-धर्म को जिसने स्वच्छ हृदय से पहचाना
 
सफल किया बस, उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
जननी जन्म भूमि पर जिसने, तन, मन, अपना वारा है
 
उसने दुःख दरिद्र हरने का अति पवित्र व्रत धारा है
 
जिसने सतत लोक-सेवा का ग्रहण किया है बर वाना
 
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।
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