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19:15, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अमिता प्रजापति
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[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
तुम्हारे रूठने और
मेरे मनाने का एक निर्बाध सिलसिला
मेरी छोटी-छोटी मनुहारों से
तुम्हारा रूठना
हालाँकि बहुत ऊपर है
पर तुम जानते तो हो
अगर मैं लुटाना चाहूँ तो
केवल मनुहारें मेरे पास हैं
तभी तो
तुम इन्हें स्वीकार लेते हो
मेरी मनुहारों पे
अपना रूठना वार देते हो?
</poem>