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00:37, 16 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
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[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=अम्न का राग / भाग 2 / शमशेर बहादुर सिंह
|आगे=अम्न का राग / भाग 4 / शमशेर बहादुर सिंह
|सारणी=अम्न का राग / शमशेर बहादुर सिंह
}}
<poem>
हर घर में सुख
शांति का युग
हर छोटा-बड़ा हर नया पुराना आज-कल-परसों के
आगे और पीछे का युग
शांति की स्निग्ध कला में डूबा हुआ
क्योंकि इसी कला का नाम भरी-पूरी गति है।
मुझे अमरीका का लिबर्टी स्टैचू उतना ही प्यारा है
जितना मास्को का लाल तारा
और मेरे दिल में पीकिंग का स्वर्गीय महल
मक्का-मदीना से कम पवित्र नहीं
मैं काशी में उन आर्यों का शंख-नाद सुनता हूँ
जो वोल्गा से आए
मेरी देहली में प्रह्लाद की तपस्याएँ दोनों दुनियाओं की
::चौखट पर
युद्ध के हिरण्यकश्य को चीर रही हैं।
यह कौन मेरी धरती की शांति की आत्मा पर कुरबान हो
::गया है
अभी सत्य की खोज तो बाकी ही थी
यह एक विशाल अनुभव की चीनी दीवार
उठती ही बढ़ती आ रही है
उसकी ईंटें धड़कते हुए सुर्ख दिल हैं
यह सच्चाइयाँ बहुत गहरी नींवों में जाग रही हैं
वह इतिहास की अनुभूतियाँ हैं
मैंने सोवियत यूसुफ़ के सीने पर कान रखकर सुना है।
</poem>