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13:44, 16 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार =रघुवीर सहाय
}}
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दूसरे तीसरे
जब इधर से निकलता हूँ
देखता हूँ,
अरे, इस वर्ष गुलमोहर में
अभी तक फूल नहीं आया
- इसी तरह आशा करते रहना
कितना अच्छा है
विश्वास रहता है कि वह प्रज्वलित
मैं भूल नहीं आया।
</poem>