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अस्तित्व / रंजना भाटिया
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16:18, 17 फ़रवरी 2009
रिश्तों से बंधी
पर कई खंडों में खंडित
"
"हाय
,
ओ रब्बा!
"
" कहीं तो मुझे
मेरे
मेरे
अस्तित्व के साथ जीने दे!!
<poem>
अनिल जनविजय
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